ल की शुरुआत में किसने सोचा था, किसको पता था कि ज़िन्दगी के मायने और इसे जीने के तरीके ही बदल जाएगें I किसको मालूम था कि कभी ऐसा भी वक़्त आएगा कि बस तन्हाई से होगी गुफ्तुगू और दीवारों से मुहब्बत शाम ओ सहर I कभी कभी लगता है कि थक गए है इस जिंदगी से, सारे सपने टूट गए है जीवन तनहा हो गया है ,और उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आती । ज़िन्दगी रोज़ एक नया रूप ले लेती है और हमारे सामने हज़ारों सवाल खड़े कर देती है दरअसल जिंदगी इम्तिहान लेती है हमें परखती है जीवन तो चुनातियों का ही दूसरा नाम है , गिर उठना और हर हाल में आगे बढ़ना ही परुषार्थ है हमें हर मुसीबत से लड़ना होगा और आगे बढ़ना ही होगा एक नया सवेरा ले कर आना होगा एक नया सूरज उगाना होगा I आइये सुनते है मेरी एक नई कविता निश्चय !